गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

एक नयी शुरूआत

आओ करें एक नयी शुरूआत
इस बिखरी हुई ज़िंदगी की
एक नये अंदाज़ से इसको संवारें
दिल की दीवारों को रंगें
अब नये रंग से
और पुराने ज़ख़्मों की छत पर
एक खपरैल नया डालें,

फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
कुछ उम्मीद के नये पर्दे सजा लें
मिटा के दिल से दर्द का अंधेरा
प्यार की जूही, चंपा महका लें,

सजाएँ आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
और तारो से अपना अंबर सजा लें

रहने न पाए अब कोई भी दरार
देखो, अब यह प्यार का घर है
आओ इसको मंदिर सा सजा लें!!

 साया किताब से 

20 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

यही आशा तो है जो जीवन पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा बनी रहती है -कविताओं के उद्धरण सर्वकालिक होते हैं मौके बेमौके बड़े काम आते हैं !
नए वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं !

राज भाटिय़ा ने कहा…

सजाएँ आँगन को अब
खिलखिलाती चाँदनी से
और तारो से अपना अंबर सजा लें
बहुत सुंदर भाव लिये हे आप की यह सुंदर कविता, नये साल के आवगम की तेयारी मे. धन्यवाद

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत सुंदर भाव ...
naya sal mubarak ho

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है रन्जना जी.
नये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.

केवल राम ने कहा…

फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
कुछ उम्मीद के नये पर्दे सजा लें
मिटा के दिल से दर्द का अंधेरा
प्यार की जूही, चंपा महका लें,
xxxxxxxxxxxxxxxx
शब्द दिल पर असर कर गए ...शुक्रिया

केवल राम ने कहा…

आपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें..देर से पहुँचने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
आशा है यह नव वर्ष आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लेकर आएगा ..शुक्रिया .

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

Ummeed Jagati ek acchi kavita hai.... :)

aapki email id nahi hai mere paas.... aap den to Rachna aapko bhejta hun...

saadar

prerna argal ने कहा…

रहने न पाए अब कोई भी दरार
देखो, अब यह प्यार का घर है
आओ इसको मंदिर सा सजा लें!!

bahut sunder dhang se rachanaa pramstut ki hai.badhai
mera blog main bhi kabhi aaiya aapka swagaat hai.comments kariya to mujhe achaa lagegaa

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया रंजना जी
प्रिय रंजू जी

आज आपका जन्मदिन है…
जीवन में खिलता रहे , बारह मास बसंत !
ख़ुशियों का सुख-हर्ष का , कभी न आए अंत !!


* जन्मदिवस की हार्दिक बधाई ! *

शुभाकांक्षी
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

रंजना जी बहुत सुन्दर रचना सुन्दर भाव उम्मीद का दिया जलने को प्रेरित करती -बधाई हो
रंजना जी लेकिन हमारी सब पुरानी यादें कूड़ा नहीं होती ---न ??
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
कुछ उम्मीद के नये पर्दे सजा लें
मिटा के दिल से दर्द का अंधेरा
प्यार की जूही, चंपा महका लें,

Unknown ने कहा…

बहुत खूब ! पढ़ कर अच्छा लगा !
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता ...अच्छा लगा यहाँ आकर ..बधाई
___________________

'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

sundar ati sunadr... jab koi darvaja band hota hai tab koi dusra darvaja khulta hai... bahut sundar bhaavnaye... aapka mere blog me bhi swagat hai...

Minakshi Pant ने कहा…

khubsurat bhavon se sazi sundar rachan :)

निर्मला कपिला ने कहा…

जीवन को सार्थक बनाते खूबसूरत एहसास। शुभकामनायें।

Udan Tashtari ने कहा…

सुन्दर...आज देखा...

सुधीर राघव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

Madhu Tripathi ने कहा…

रहने न पाए अब कोई भी दरार
देखो, अब यह प्यार का घर है
आओ इसको मंदिर सा सजा लें!!
ye paktiya kavita ki jaan hai
kavyachitra.blogspot.com

Rajput ने कहा…

फेंक दें बाहर,
पुरानी यादों का कूड़ा
कुछ उम्मीद के नये पर्दे सजा लें
मिटा के दिल से दर्द का अंधेरा
प्यार की जूही, चंपा महका लें

बहुत अच्छी रचना , लम्बे अरसे बाद
पढ़ा